सारों को घर लौटते देखने के बाद अब मेरी बारी थी, और मैं खेल की इस पारी को निभानेको चल पडा घर की ओर… इस दुनिया में बहुत कम जगहें होती हैं जिन्हें हम घर कह पाएं और बम्बई एक ऐसा ही बसेरा है जिसे हर कोई घर कहना चाहता है, कह पाता है। यहां हर एक को इक मुट्ठी आसमान और इक टुकडा झमीन का चाहे ना मिले, पर बम्बई में शायद ही कोई ऐसा होगा जो बिल्कुल ही भूखा सोता होगा – यह शहर सभी को रोटी देनेकी फितरत रखता है। मेरा सफ़र ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही लंबा रहा, घर की ओर चलते चलते – पर जब में यहां आया तो इस शहर ने ना ही अपनी सूरत बदली थी, ना सीरत। सब कुछ वैसा ही था जैसा मैं ने जाने से पहले देखा था। ज़मीन पर रेंगती हुई सडकों पर हज़ारों समंदरों के बहाव की तरह चलती भीड में खोनेको मैं लौट कर आया था। और अगले ही दिन मैं इस जगह से अपनी पुरानी पहचान कायम करने को निकला।

 

सबसे पहले मैं मरीन ड्राइव पहुंचा, शहर के दरिया से मिलने और कुछ घंटे लहरों को देखते देखते बिता दिए। शायद कई कहानियां गुज़रे हुए इस साल में इन लहरों में उठकर समा गयी होंगी और किसी ने उन्हें महसूस तक नहीं किया होगा। किनारे पर बैठे बैठे मैं अपनी सांसों में शहर की मैली हवा को भरकर पत्त्थर पर रेंगते हुए दरिया के बाशिंदों की शहर से जुड्ने-अलग होने की असमंजस देखकर मैं अपने आपकी तुलना उनसे करने लगा। क्या यह अनजानों का बसेरा मेरा भी “घर” है? वास्तविकता की लहरों ने मुझे घेरते हुए यह याद दिलाया कि इस बसेरे में मैं भी यहां उतना ही अजनबी हूं जितने सारे और! शायद मैं औरों से भी ज़्यादा अजनबी हो चुका हूं इस बसेरे से अब… पर अब भी पहचान के कई छोर किसी कोने से बाहर नज़र आ रहे थे, जब मैंने यहां की सडकों से दुआ-सलाम की।

 

एक एक कडी जोडनेको मैं बम्बई की अलग अलग जगहों से फिर मिलने चल पडा। तो पहले जाकर कुछ पेट पूजा की जाए! चर्चगेट स्टेशन के सामने सत्कार रेस्ट्रां में जब मैं बैठा तो भीड इतनी थी कि हर मेज़ पर ३- ४ अनजान लोगों को बिठाकर उनकी महमान-नवाज़ी की जा रही थी! मैंने अपना ऒर्डर दे दिया था और खाना आनेका इंतज़ार कर रहा था, तब तक एक बंबैया – माफ़ी सरकार, मुंबैया… – भाईसाहब ने मेरे सामनेकी कुर्सी में तशरीफ़ फ़रमाई। कुछ देर तक मेरी ओर देखने के बाद साहब ने एक लंबी-चौडी मुस्कान धरते हुए मुझे पूछा कि मुझे नेकटाई – गले का फ़ंदा- बांधने आता है या नहीं। अब मैं तो निकला ही था इस बसेरे से जान-पहचान बढानेको! मैंने उन साहब का फ़ंदा बांध दिया तो उन्होंने मुझे मॆंगोला के फ़ायदे बताए, और चल पडे! फिरसे मैं अपनी मेज़ पर अकेला था, और मेरा खाना आ गया। अब बारी थी एक मोटे तगडे साहब की – वह जैसे ही आकर मेरे सामनेवाली कुर्सीमें बैठे कि मुझसे पूछ बैठे: “भाईसा, यह जो आपने खाना मंगवाया है, उसे क्या कहते हैं?” मैं झरा सा चकरा ही गया, लेकिन मैं बिना किसी विलंब के सही जवाब दे पाया: “मसाला उत्तप्पम”। अब भाई एक सेवक को पुकारने लगे: “श..श…श एय एय भाई, ज़रा इधर आना… मेरे लिये एक मसाला उत्तप्पम ले आना… और सुनो, सांभर कि दो वाटी ले आना… और सांभर गाढा मत बनाना, मेरे लिये पतला चाहिये है…।” यह सब इतनी ऊंची आवाज़ में हुआ कि सारे होटल में लोग हमारी मेज़ की तरफ़ देखने लगे थे। मैंने किसी तरह अपनी पेट पूजा का समापन किया और वहां से निकला।

 

दिन भर मैं भीडभरी रेल में एक छोर से दूसरे छोर घूमता रहा रात होने तक, और फिर मेरे मुसाफ़िरखाने कि ओर चल पडा। देर रात, एक तरफ लोग अपनी गाडियां लिये शहर की रौनक का नज़ारा लेने चले थे तो दूसरी ओर सडक के किनारों पर रहनेवाले अपने दिनका लेखा-जोखा कर रहे थे। कहीं रेस्ट्रांवाले साफसफ़ाई करके दिनभर की थकान दूर कर रहे थे, और आनेवाले कल का सामान जुटा रहे थे, तो कहीं कोई अपने धंदे की बोहनी करनेकी राह देख रहे थे। ऐसे एक साहब को मैंने मेरे घर छोड देनेको कहा, और रिक्शा चलाते ही वह भी अविरत बोलने लगे! मुझ पर सवालों की झडी बरसी, और ऐसा लगने लगा कि उस समय उन साहब से ज़्यादा मेरी फ़िक्र किसी और को हो ही नहीं सकती! बातों बातों में उन्हों ने यह जान लिया कि मैं अपनी तकदीर का दांव आज़मा रहा हूं बम्बई में नौकरी ढूंढने आकर, और मुझे कई रास्ते बताये अपनेआपको व्यस्त रखनेके। फिर बात आयी कर्मयोग के महत्व की, और कलियुग में घटते हुए कर्मयोगियों की! और तब तक मेरा मकाम आ गया। मैं जब साहब को पैसे देकर चलने ही लगा की उन्होंने मुझसे पूछा: “भाईसा, दवा कंपनी में काम करोगे क्या आप? मेरे एक रेगुलर पैसेंजर हैं जो किसी दवा कंपनी में ऊंची पोस्ट पर काम करते हैं…” यह सुनते ही मुझे बस एक गीत गुनगुनानेका मन किया –

 

माना अपनी जेबसे फ़कीर हैं, फिरभी यारों दिलके हम अमीर हैं…

मिटे जो प्यार के लिये वो जिंदगी, जले बहार के लिये वो जिंदगी…

 

कहेगा फूल हर कलीसे बार बार, जीना इसीका नाम है!

 

किसीकी मुस्कुराहटों पे हों निसार, किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार,

किसीके वास्ते हो तेरे दिलमें प्यार, जीना इसीका नाम है!